पाकिस्तान: आटे के बाद अब चीनी का संकट
पाकिस्तान इन दिनों खाद्य सामग्री के संकट और महंगाई से दो-चार है. संकट इतना गहरा है कि पाकिस्तान की इमरान ख़ान सरकार इसको नियंत्रित करने की कोशिशें कर रही है.
हाल ही में आटे का संकट था जो इमरान ख़ान सरकार के मुताबिक़ अब ख़त्म हो चुका है लेकिन वहीं चीनी महंगी होने का मामला सामने आ रहा है.
इस पर क़ाबू पाने के लिए इमरान ख़ान सरकार ने राशन की दुकानों को सब्सिडी देने का ऐलान किया है. वहीं, दूसरी ओर पंजाब सरकार ने उन लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई शुरू करने का ऐलान किया है जो चीनी जमा कर रहे हैं.
लाहौर के ज़िला प्रशासन ने बीते तीन दिनों में लाहौर के विभिन्न इलाक़ों से आठ हज़ार से अधिक चीनी के थैले क़ब्ज़े में लिए हैं जिनका वज़न तक़रीबन चार लाख किलो से अधिक था.
डिप्टी कमिश्नर लाहौर दानिश अफ़ज़ल ने बीबीसी को बताया कि ये चीनी ग़ैर-क़ानूनी तौर पर जमा की गई थी और इसमें शामिल रहे लोगों के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई की जा रही है.
इस कार्रवाई में चार ऐसे व्यापारी भी शामिल हैं जिन्हें 3 एमपीओ क़ानून के तहत पहले ही नज़रबंद किया गया है.
एमपीओ यानी पब्लिक ऑर्डर बरक़रार रखने के क़ानून का इस्तेमाल अमूमन उन लोगों के ख़िलाफ़ किया जाता है जिन पर शांति भंग करने का शक होता है.
चीनी जमा करने वाले कारोबारियों का कहना है कि चीनी का भंडारण चीनी व्यापार के लिए ज़रूरी है. तो सवाल ये उठता है कि कितनी चीनी का भंडारण किया जा सकता है?
यह बड़ी सीधी से प्रक्रिया नज़र आ सकती है लेकिन चीनी के भंडारण से सरकार को डर लग रहा है और उसे एमपीओ क़ानून इस्तेमाल करना पड़ रहा है.
जमाख़ोरी चीनी की
पाकिस्तान में ये घटना इस तरह की है कि जैसे अच्छी भली चलती फिरती चीनी को अग़वा कर लिया जाए और मुंह मांगी क़ीमत पर रहा किया जाए. इस मामले में चीनी की क़ीमतों में वृद्धि को समझना भी आसान है.
अगर देश की ज़रूरत के मुताबिक़ या इससे ज़्यादा मिलों में चीनी बनती रहे तो इसकी मांग नहीं बढ़ती और क़ीमत में स्थिरता रहती है या फिर क़ीमत कम हो जाती है. फिर इसमें मुनाफ़ाख़ोर शामिल होते हैं जो चीनी जमा कर लेते हैं और बड़ी तादाद में इसकी जमाख़ोरी की जाती है.
यूं चीनी मार्केट तक नहीं पहुंच पाती तो खेल मुनाफ़ाख़ोर के हाथ में आ जाता है. चीनी की मांग बढ़ जाती है और वो आम आदमी की जेब से अधिक क़ीमत निकलवाने के बदले में चीनी बाज़ार में लाते हैं.
डिप्टी कमिश्नर लाहौर दानिश अफ़ज़ल के मुताबिक़ बीते महीने की 9 तारीख़ को शुरू होने वाले क्रैकडाउन में सिर्फ़ पहले ही रोज़ 50 किलो के 6,410 चीनी के थैले क़ब्ज़े में लिए गए.
अंदाज़ों से पांच जगहों पर छापे मारे गए जहां से ये चीनी बरामद हुई. दानिश अफ़ज़ल के मुताबिक़ चीनी का स्टॉक करने का अधिकार सिर्फ़ उसी शख़्स के पास है जिसके पास खाद्य विभाग का लाइसेंस है.
वो कहते हैं, "ये लाइसेंस एक हज़ार थैलों का हो सकता है, दो या तीन हज़ार का हो सकता है. हर जमाकर्ता को यह जानकारी सार्वजनिक करनी होती है. अगर वो लाइसेंस से ज़्यादा चीनी रख रहा है तो ये जमाख़ोरी में आता है."
हाल ही में आटे का संकट था जो इमरान ख़ान सरकार के मुताबिक़ अब ख़त्म हो चुका है लेकिन वहीं चीनी महंगी होने का मामला सामने आ रहा है.
इस पर क़ाबू पाने के लिए इमरान ख़ान सरकार ने राशन की दुकानों को सब्सिडी देने का ऐलान किया है. वहीं, दूसरी ओर पंजाब सरकार ने उन लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई शुरू करने का ऐलान किया है जो चीनी जमा कर रहे हैं.
लाहौर के ज़िला प्रशासन ने बीते तीन दिनों में लाहौर के विभिन्न इलाक़ों से आठ हज़ार से अधिक चीनी के थैले क़ब्ज़े में लिए हैं जिनका वज़न तक़रीबन चार लाख किलो से अधिक था.
डिप्टी कमिश्नर लाहौर दानिश अफ़ज़ल ने बीबीसी को बताया कि ये चीनी ग़ैर-क़ानूनी तौर पर जमा की गई थी और इसमें शामिल रहे लोगों के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई की जा रही है.
इस कार्रवाई में चार ऐसे व्यापारी भी शामिल हैं जिन्हें 3 एमपीओ क़ानून के तहत पहले ही नज़रबंद किया गया है.
एमपीओ यानी पब्लिक ऑर्डर बरक़रार रखने के क़ानून का इस्तेमाल अमूमन उन लोगों के ख़िलाफ़ किया जाता है जिन पर शांति भंग करने का शक होता है.
चीनी जमा करने वाले कारोबारियों का कहना है कि चीनी का भंडारण चीनी व्यापार के लिए ज़रूरी है. तो सवाल ये उठता है कि कितनी चीनी का भंडारण किया जा सकता है?
यह बड़ी सीधी से प्रक्रिया नज़र आ सकती है लेकिन चीनी के भंडारण से सरकार को डर लग रहा है और उसे एमपीओ क़ानून इस्तेमाल करना पड़ रहा है.
जमाख़ोरी चीनी की
पाकिस्तान में ये घटना इस तरह की है कि जैसे अच्छी भली चलती फिरती चीनी को अग़वा कर लिया जाए और मुंह मांगी क़ीमत पर रहा किया जाए. इस मामले में चीनी की क़ीमतों में वृद्धि को समझना भी आसान है.
अगर देश की ज़रूरत के मुताबिक़ या इससे ज़्यादा मिलों में चीनी बनती रहे तो इसकी मांग नहीं बढ़ती और क़ीमत में स्थिरता रहती है या फिर क़ीमत कम हो जाती है. फिर इसमें मुनाफ़ाख़ोर शामिल होते हैं जो चीनी जमा कर लेते हैं और बड़ी तादाद में इसकी जमाख़ोरी की जाती है.
यूं चीनी मार्केट तक नहीं पहुंच पाती तो खेल मुनाफ़ाख़ोर के हाथ में आ जाता है. चीनी की मांग बढ़ जाती है और वो आम आदमी की जेब से अधिक क़ीमत निकलवाने के बदले में चीनी बाज़ार में लाते हैं.
डिप्टी कमिश्नर लाहौर दानिश अफ़ज़ल के मुताबिक़ बीते महीने की 9 तारीख़ को शुरू होने वाले क्रैकडाउन में सिर्फ़ पहले ही रोज़ 50 किलो के 6,410 चीनी के थैले क़ब्ज़े में लिए गए.
अंदाज़ों से पांच जगहों पर छापे मारे गए जहां से ये चीनी बरामद हुई. दानिश अफ़ज़ल के मुताबिक़ चीनी का स्टॉक करने का अधिकार सिर्फ़ उसी शख़्स के पास है जिसके पास खाद्य विभाग का लाइसेंस है.
वो कहते हैं, "ये लाइसेंस एक हज़ार थैलों का हो सकता है, दो या तीन हज़ार का हो सकता है. हर जमाकर्ता को यह जानकारी सार्वजनिक करनी होती है. अगर वो लाइसेंस से ज़्यादा चीनी रख रहा है तो ये जमाख़ोरी में आता है."
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